Saturday, 16 September 2017

खोया है वो

वो गुम है दुनिया की भीड़ में
ना जाने क्या खोजता रहता  हैं
भुल आया है
शायद कुछ अपना
जो अब बेगानो  मे दुंढ़ता है

जाने वो क्या है
जो बेचन है उसका यह दिल
क्या गम छिपाये रखा  है
जो यूँ खामोश नाखुश जी रहा है

रफ्तार से दौड़ती जिन्दगी
कल लगती थी जानी  पेहचानी
आज जिन्दगी  है शायद कोई जेसे अजनबी
और वो एक अकेला  गुमनाम सा राही

भूल आया वो शायद मंजिल
निकला था कभी खोजने वो जिसका पता
आज पता है
लेकिन  पुराना
पुराना शहर
पुरानी इमारतें
वही पुरानी गलिया
लेकिन अफ़सोस है कुछ भी पहले सा नही

टूटे आएने मे तलाशता है आज खुद को वो
दुन्दला अक्स भी जेसे अब नज़र आता  है पराया

क्या हूँ मैं?
क्यों हूँ मैं?
है उलझन मन और ना जाने कितने  सवाल

हाँ दुंढ़ता है कुछ वो
शायद आज भी
जिसे खोया था उसने इसी दुनिया की भीड़ में

हाँ खोया है वो
उसने कुछ खोया है
जो खोया  है
क्यों हैं आज खुद वो ।

--Sybil Samuel


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