वो गुम है दुनिया की भीड़ में
ना जाने क्या खोजता रहता हैं
भुल आया है
शायद कुछ अपना
जो अब बेगानो मे दुंढ़ता है
जाने वो क्या है
जो बेचन है उसका यह दिल
क्या गम छिपाये रखा है
जो यूँ खामोश नाखुश जी रहा है
रफ्तार से दौड़ती जिन्दगी
कल लगती थी जानी पेहचानी
आज जिन्दगी है शायद कोई जेसे अजनबी
और वो एक अकेला गुमनाम सा राही
भूल आया वो शायद मंजिल
निकला था कभी खोजने वो जिसका पता
आज पता है
लेकिन पुराना
पुराना शहर
पुरानी इमारतें
वही पुरानी गलिया
लेकिन अफ़सोस है कुछ भी पहले सा नही
टूटे आएने मे तलाशता है आज खुद को वो
दुन्दला अक्स भी जेसे अब नज़र आता है पराया
क्या हूँ मैं?
क्यों हूँ मैं?
है उलझन मन और ना जाने कितने सवाल
हाँ दुंढ़ता है कुछ वो
शायद आज भी
जिसे खोया था उसने इसी दुनिया की भीड़ में
हाँ खोया है वो
उसने कुछ खोया है
जो खोया है
क्यों हैं आज खुद वो ।
--Sybil Samuel
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